बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

इशारों को अगर समझो ........

डाकघर में पोस्टमैन की कार्यकुशलता एवं उनकी निष्ठा की एक अलग पहचान रही है। इतना ही नहीं, वे बड़ी सूझबूझ वाले भी होते हैं। एक मिसाल देखिये ---

देवेन्द्र कुमार ठाकुर 

             एकबार ग्रामीण क्षेत्र के एक पोस्टमैन को एक पत्र वितरण के लिए प्राप्त हुआ। पत्र पर मकान संख्या, गली, रोड, डाकघर, जिला सभी कुछ सही-सही लिखे हुए थे। किन्तु पत्र पानेवाले का नाम अंकित नहीं था। पत्र पानेवाले के नाम की जगह पर एक छेद बना दिया गया था और उसको लाल स्याही से घेर दिया गया था। बेचारे  पोस्टमैन का दिमाग एकबारगी चक्कर खा गया। वह सोच में पड़ गया - आखिर पत्र की डिलीवरी दे तो किसे दे? उसने अपने माथे पर जोर दिया। उसने सोचा कि आखिर पत्र में नाम नहीं देने का कारण क्या हो सकता है? पोस्टमैन तो हर गली-मोहल्ले-गाँव-गिराम की खबर रखता है।उसके दिमाग में एक बात आई कि हो सकता है, भारतीय सभ्यता-संस्कृति में एक नारी अपने पति का नाम न लेती है और न लिखती है। हाल ही में छेदी लाल नाम के एक आदमी की शादी हुई है और उसकी नई-नवेली दुल्हन द्वारा पत्र लिखा गया हो। हो सकता है कि पते की जगह पर बनाया गया छेद 'छेदी' को और लाल घेरा 'लाल' को अर्थात छेदी लाल का बोध कराता हो। उसने छेदी लाल के घर का दरवाज़ा खटखटाया और छेदी लाल को वह पत्र दिखाया। ख़त देखते ही छेदीलाल का मुखड़ा  ख़ुशी से खिल गया। अब पोस्टमैन को सारा माजरा समझ में आ चुका था। उसने झट से छेदीलाल को लिफाफा थमा दिया और जाने लगा। छेदीलाल ने उसे रोका और अपने पॉकेट से एक दस का नोट निकलकर दिया और कहा - भैया! तुम मिठाई खा लेना। यह मेरी घरवाली का पहला खत है। (सौजन्य- श्री देवेन्द्र कुमार ठाकुर, उपडाकपाल, भागलपुर डाक प्रमंडल)         

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