रविवार, 21 अक्तूबर 2012

विजेता

 

सांसारिक वैभव को जीत लेने के बाद  महान के मन में एक अन्य इच्छा जाग्रत हुई। वह इच्छा थी अमृत की प्राप्ति की। अमृत पान करके सिकंदर शरीर से भी अमर हो जाना चाहता था।अमृत की तलाश के लिए उसने अथक प्रयास किया। अंततः उसने उस सरोवर की खोज कर ही ली, जहां अमृत विद्यमान था। सिकंदर काफी खुश था, आखिरकार उसकी आकांक्षा पूरी होनेवाली थी। सरोवर की तरफ झुककर जैसे ही अंजुरि  भर अमृत लेने वाला था कि  उसने कुछ आवाज़ सुनीं। वह पीछे मुड़कर देखा, कुछ जीव, कुछ पशु, कुछ पक्षी उससे कुछ कहना चाह रहे थे। सिकंदर ने देखा, वे  पशु-पक्षी बड़ी ही दुर्गति की अवस्था थे। उनके पंख झड़े हुए, शरीर मुरझाया हुआ, अंधे, लूले,लंगड़े, पंजे रहित बस कंकाल मात्र ही थे। उनमें से एक ने कहा - रुको। सिकंदर, पहले हमारी दशा देख लो, हम भी अमृत की तलाश में थे। तलाश पूरी हुई तो हमने अमृत भी पी लिया और अमर हो गए। अब  हम मर नहीं सकते। देखो, हम अंधे, लूले, कमजोर हो गए हैं, हाथ-पैर जल गए हैं, हम किसी काम के नहीं रहे, हम केवल दुःख ही दुःख भोग सकते हैं। पर मर नहीं सकते। हम चिल्ला रहे हैं, चीख रहे हैं कि कोई हमें मार डालो। लेकिन हमें कोई मार डालो। लेकिन हमें कोई मार नहीं सकता, हम जीवन का आनंद नहीं ले सकते। हम दिन रात प्रार्थना करते हैं कि हम मर जाएँ, बस किसी तरह भी मर जाएँ। लेकिन कोई सुननेवाला नहीं। हमारी दयनीय हालत देख लो और एक बार फिर से विचार कर लो  फिर इस अंजुरि में अमृत जल भरना सिकंदर ने अपना हाथ तुरंत झटक लिया। वह सरोवर से बाहर  आया। अपने घोड़े पर सवार होकर लौट गया। उसने फिर पीछे मुड़कर  एकबार भी अमृत सरोवर की ओर नहीं देखा। क्या आप भी अमृत पान  करना  चाहेंगे?   

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