मंगलवार, 6 नवंबर 2012

जब ख़त का मज़मून ही बदल गया ....

                  एक गाँव में एक स्त्री रहती थी। उसके पति आई0टी0आई0 में कार्यरत थे। अल्पशिक्षित होने के कारण उसे पता नहीं था कि पूर्ण विराम कहाँ लगेगा। उसने अपने पति को ख़त लिख ही दिया और उसका जहाँ मन हुआ,पूर्ण विराम का चिन्ह लगा दिया।ख़त का मज़मून कैसे बदल बदल गया, नीचे ख़ुद देख लीजिये-
             मेरे प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणों में। आपने  अभी तक चिट्ठी नहीं लिखी मेरी सहेली को। नौकरी मिल गई है हमारी गाय को।बछड़ा दिया है दादाजी ने। शराब की लत लगा ली है मैंने। तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे।भेड़िया खा गया दो महीने का राशन। छुट्टी पर आते समय ले आना एक ख़ूबसूरत औरत।मेरी सहेली बन गई है और इस समय टी0वी0 पर गाना गा रही है हमारी बकरी। बेच दी गई है तुम्हारी माँ। तुमको बहुत याद कर रही है एक पड़ोसन। हमें बहुत तंग करती है तुम्हारी बहन। सिरदर्द में लेटी है तुम्हारी पत्नी।                

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