आत्म-विश्वास
एक दिन सृष्टा ने सोचा- चलकर अपनी सृष्टि को तो देखूं। धरती पर आते ही उसे सबसे पहले किसान मिला। वह पहाड़ खोदने में लगा था। उसे देखकर सृष्टा हंस पड़ा और फिर किसान से पहाड़ खोदने का कारण
पूछा।
किसान ने कहा- " महाराज! यह कैसा न्याय है। पहाड़ को अन्यत्र होना चाहिए था। बादल आते हैं और इससे टकराकर उस पार बरस कर चले जाते हैं। मेरे खेत सूखे पड़े रहते हैं। मैं इस पहाड़ को हटाकर ही दम लूँगा। सृष्टा ने पूछा- इस विशाल पहाड़ को हटा पाओगे?
"क्यों नहीं? मैं इसे हटाकर ही मानूंगा।" किसान ने उत्तर दिया।
सृष्टा आगे बढ़ गया। सामने पहाड़ खड़ा था- याचक की मुद्रा में। वह सृष्टा के सामने गिड़गिड़ाया - "विधाता मेरी रक्षा कीजिये।वह किसान अपने रास्ते से हटा कर ही दम लेगा।"
-' क्या तुम इतने कमजोर हो कि किसान के श्रम के आगे धराशायी हो जाओगे?'- सृष्टा ने कहा।
पहाड़ बोला- " आप किसान का आत्म -विश्वास देख ही रहे हैं। वह मुझे हटाकर ही रहेगा। यदि यह काम यह न कर पाया तो इसके बीटा-पोता कर डालेंगे। एक दिन मुझे भूमिगत होना ही पड़ेगा। आत्म -विश्वास असंभव को भी संभव बना देता है।" ---चेतन दुबे
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