शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

अपने सपने को जिओ

अपने सपने को जिओ 
        एक  लड़के  एक सितारे की तरफ देखा और रोने लगा। सितारे ने पूछा- लड़के, तुम क्यों रो रहे हो? लड़के ने कहा - तुम इतनी दूर हो कि मैं तुम्हें कभी नहीं छू पाऊंगा। इस पर सितारे ने जवाब दिया- लड़के, अगर मैं पहले से ही तुम्हारे दिल में नहीं होता तो तुम मुझे कभी देख भी नहीं पाते।                                                                     --- जॉन मैग्लिओला 

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

तेरा मुस्कुराना ग़जब ढा गया

तेरा  मुस्कुराना ग़जब ढा गया 
एक शायर ने कहा है-
                   "हर ज़ज़्बात  को जुबां  नहीं मिलती !
                                  हर आरज़ू को दुआ नहीं मिलती!!
                     हँसते रहो दुनिया के साथ, 
                                 आंसुओं को पनाह  नहीं मिलती !!"
         जीवन में मुस्कान का बड़ा महत्व है।यह अनमोल है, मगर यह बहुत मायने रखती है। यह आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है। यह किसी भी परेशानी में एक दोस्त की तरह हाथ बढ़ाती है। सच्ची मुस्कान हमेशा दूसरों में दोस्ती की भावना पैदा करती है। मुस्कान स्वाभाविक होनी चाहिए, बनावटी नहीं। न मुस्कुराने वाले की हालत वही होती है, जैसे बैंक बैलेंस में तो करोड़ों रूपये जमा है, पर उन्हें ज़रुरत पड़ने पर बैंक से निकालने के लिए हाथ में चेक बुक नहीं है। उर्दू शायर जफ़र गोरखपुरी कहते हैं- 
            " हद से अधिक संजीदगी, 
                                 सच पूछो तो रोग है !
              ठहाके लगाकर हंसा करो, 
                                  दुःख तो एक संजोग है !!"
मुस्कुराने से शरीर में कुछ ऐसे हार्मोन निकलते हैं, जो मनुष्य के ख़राब मूड को भी अच्छा बना देते हैं। हँसने और मुस्कुराने में थोड़ा-सा फ़र्क है।मुस्कुराना केवल मन की क्रिया है, जबकि हँसना मन और तन दोनों की। परन्तु खुलकर हँसना सबसे अच्छी क्रिया है। क्योंकि हँसने के दौरान शरीर की मांसपेशियों में कम्पन पैदा होता है, जिससे शरीर की अकड़न और खिंचाव कम हो जाता है। फिर मांसपेशियों में ऑक्सीजन का प्रवाह सुचारु हो जाता है, जो आपकी कार्यक्षमता को बढ़ाता है। साथ ही यह शरीर में जमा अतिरिक्त वसा को भी पिघलाकर बाहर निकालती है। मुस्कुराने से मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती है।
         न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जोनाथन स्विफ्ट इस बात को बड़े ही दिलचस्प ढंग से समझाते हैं कि दुनिया में तीन सबसे बड़े डॉक्टर हैं- 1. संतुलित आहार 2. शान्ति और 3. आपकी मुस्कान। अनुसंधान से स्पष्ट हो चुका है कि हँसी स्वास्थ्य के लिए  ही आवश्यक है, जितना कि भोजन। यह सबसे बड़ी दवा है। क्योंकि यह मानसिक तनाव दूर करती है और मानवीय संबंधों को सुखद बना कर आपके पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन को सफल बनाती है। 
          हमारे मस्तिष्क के दो भाग होते हैं- विचार और मन। शरीर की 90 प्रतिशत उर्जा मन के लिए और 10 प्रतिशत उर्जा विचारों के लिए सुरक्षित होती है। हँसने से मन की उर्जा बढ़ती है। वस्तुतः मुस्कान में वह जादू है, जो आपकी ज़िन्दगी को ख़ुशियों से भर देती है। आपकी एक सच्ची मुस्कान लोगों को आकर्षित करती है। तो आइये, हम अपने ग्राहकों का, सामने वाले व्यक्तियों का स्वागत मुस्कराहट के साथ करें और उनका दिल जीत लें।         
    

            

बुधवार, 28 नवंबर 2012

ख़ुश रहे तू सदा ........

                                                    ख़ुश रहे तू सदा .......
एक चीनी कहावत है -  
           यदि आपको एक घंटा की ख़ुशी चाहिए, तब झपकी लीजिए !    
           एक दिन की ख़ुशी चाहिए तो पिकनिक पर जाइए !!
           एक महीने की ख़ुशी के लिए शादी कर लीजिए !
           एक साल की ख़ुशी के लिए विरासत में संपत्ति प्राप्त कीजिए
लेकिन, ज़िदगी भर की ख़ुशी के लिए अपने ग्राहक को सम्मान दीजिए... 
जयकृष्ण रजक
       आपको कितनी ख़ुशी चाहिए, विकल्प आपके सामने है। ख़ुशी तो एक नज़रिया है, एक आदत है, जो रोज़मर्रा के अनुभवों से प्राप्त होती है।काम करने का आनंद एक दर्शन से भी अधिक मूल्यवान है। हम और आप जो भी काम करते हैं, उसमें सफलता और आनंद प्राप्त करना एक अलग प्रणाली है। आप हमेशा ही अपने सहयोगियों, अधिकारियों तथा अपने जूनियर्स का हँसकर स्वागत कीजिए। डाकघर में चाहे हम जिस पद पर भी काम करें, हर रोज़ आम पब्लिक से रू -ब-रू होते हैं। जब हम उनका स्वागत एक स्वाभाविक मुस्कान के साथ के करते हैं, उन्हें नमस्कार कहते हैं, तो वे खुश हो जाते हैं। भले वे अपनी शिकायत को लेकर गुस्से में हमारे पास आते हैं, हमारे  अच्छे व्यवहार से, कुछ क्षण के लिए ही सही, अपनी शिकायत को भूल जाते हैं। और गुस्से की जगह सदाचार आ जाता है। जब उनकी शिकायत दूर हो जाती है, तो वे खुश होकर हमें धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। इस प्रकार के क्रिया-कलाप से ग्राहकों का विश्वास हमारे प्रति और डाकघर के प्रति बढ़ता जाता है। और तब हम ख़ुशी का अनुभव करते हैं तथा इसका प्रभाव ताजिंदगी बरक़रार रहती है। इसके ठीक उलट जब हम ग्राहकों का  नहीं करते, उसका कम संतोषप्रद नहीं होता है तो वे अपने गुस्से का इज़हार करते हैं, उन्हें टेंशन होता है और हमें भी। उस टेंशन में हम खुश नहीं रह सकते। तो आइये, हम डाकघर के ग्राहकों,अपने सहयोगियों, अधिकारियों एवं अपने जूनियर्स का मुस्कान के साथ स्वागत करें, उनका सम्मान करें और सदा खुश रहें।        
                   

शनिवार, 17 नवंबर 2012

आत्म-विश्वास

आत्म-विश्वास 

        एक दिन सृष्टा ने सोचा- चलकर अपनी सृष्टि को तो देखूं। धरती पर आते ही उसे सबसे पहले किसान मिला। वह पहाड़ खोदने में लगा था। उसे देखकर सृष्टा हंस पड़ा और फिर किसान से पहाड़ खोदने का कारण 
पूछा।
       किसान ने कहा- " महाराज! यह कैसा न्याय है। पहाड़ को अन्यत्र होना चाहिए था। बादल आते हैं और इससे टकराकर उस पार बरस कर चले जाते हैं। मेरे खेत सूखे पड़े रहते हैं। मैं इस पहाड़ को हटाकर ही दम लूँगा। सृष्टा ने पूछा- इस विशाल पहाड़ को हटा पाओगे?
       "क्यों नहीं? मैं इसे हटाकर ही मानूंगा।" किसान ने उत्तर दिया।
सृष्टा आगे बढ़ गया। सामने पहाड़ खड़ा था- याचक की मुद्रा में। वह सृष्टा के सामने गिड़गिड़ाया - "विधाता मेरी रक्षा कीजिये।वह किसान अपने रास्ते से हटा कर ही दम लेगा।"
        -' क्या तुम इतने कमजोर हो कि किसान के श्रम के आगे धराशायी हो जाओगे?'- सृष्टा ने कहा।
         पहाड़ बोला- " आप किसान का आत्म -विश्वास देख ही रहे हैं। वह मुझे हटाकर ही रहेगा। यदि यह काम यह न कर पाया तो इसके बीटा-पोता कर डालेंगे।  एक दिन मुझे भूमिगत होना ही पड़ेगा। आत्म -विश्वास असंभव को भी संभव बना देता है।"                 ---चेतन दुबे 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

धन्यवाद

     धन्यवाद 
        एक पादरी जंगल से गुजर रहा था कि सामने शेर आ गया। दर के मारे उसकी आँखें बंद हो गई। कुछ क्षण बाद जब उसने पलकें खोलीं तो देखा कि शेर भी पंजे जोड़े और आँखें मूंदे कुछ बुदबुदा रहा है।
        वह खुश होकर बोला, " भाई शेर, मुझे पता चल गया है कि तुम ईश्वर को मानते हो। सचमुच तुम भले हो, मैं तो यों ही डर गया था।"
         " हाँ, फ़ादर। मैं आज के भोजन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था।" शेर ने कहा और पंजे खोल दिया।
 -- एम्ब्रोस बियर्स 

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

दिवाली- इंस्पेक्टर पोस्ट का जन्म

दीपावली से ठीक दस दिन पहले। स्वर्ग-लोक, मर्त्य-लोक,और पाताल-लोक के सभी दिवाली के शुभागमन की तैयारी में  भगवान ब्रह्मा जी का दरबार लगा हुआ था। ब्रह्मा जी द्वारा एक अहम मीटिंग बुलाई गयी थी। इस मीटिंग में सभी देवतागण बुलाये गए थे। सभी देवता सोच में पड़े हुए थे कि सभी लोग घर-द्वार  की सफाई में लगे हैं। आखिर ब्रह्मा जी को किस बात के लिए  मीटिंग करनी पड़ गयी। मीटिंग शुरू हुई। ब्रह्मा जी ने कहा - "ऐसी सूचना मिली है कि मर्त्य-लोक के कुछ लोग दिवाली में पहले दूसरे के घर में दीया जलाते हैं,फिर अपने घर में। यह अच्छी बात नहीं है। इसीलिए इस बार मर्त्यलोक में यह आदेश जारी करवाया जाय कि लोग पहले अपने घर में दीया जलाया जाय, फिर दूसरे के घर में।    

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

जब ख़त का मज़मून ही बदल गया ....

                  एक गाँव में एक स्त्री रहती थी। उसके पति आई0टी0आई0 में कार्यरत थे। अल्पशिक्षित होने के कारण उसे पता नहीं था कि पूर्ण विराम कहाँ लगेगा। उसने अपने पति को ख़त लिख ही दिया और उसका जहाँ मन हुआ,पूर्ण विराम का चिन्ह लगा दिया।ख़त का मज़मून कैसे बदल बदल गया, नीचे ख़ुद देख लीजिये-
             मेरे प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणों में। आपने  अभी तक चिट्ठी नहीं लिखी मेरी सहेली को। नौकरी मिल गई है हमारी गाय को।बछड़ा दिया है दादाजी ने। शराब की लत लगा ली है मैंने। तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे।भेड़िया खा गया दो महीने का राशन। छुट्टी पर आते समय ले आना एक ख़ूबसूरत औरत।मेरी सहेली बन गई है और इस समय टी0वी0 पर गाना गा रही है हमारी बकरी। बेच दी गई है तुम्हारी माँ। तुमको बहुत याद कर रही है एक पड़ोसन। हमें बहुत तंग करती है तुम्हारी बहन। सिरदर्द में लेटी है तुम्हारी पत्नी।                

रविवार, 4 नवंबर 2012

रोटी का ऋण

       बात 1980 ई0 से पहले की है, जब हाजीपुर और पटना के बीच गाँधी सेतु नहीं बना था। उत्तर बिहार और राज्य की राजधानी के बीच आवागमन  का एकमात्र साधन हाजीपुर-सोनपुर होते हुए  पहलेजा घाट और दीघाघाट के बीच  गंगा नदी पर चलनेवाला स्टीमर था। इसी स्टीमर की सहायता से डाक की ढुलाई का काम भी होता था। पहलेजा घाट में डाक आदान-प्रदान करने के लिए एक छोटा-सा ट्रांजिट मेल ऑफिस भी था जिसमें अट्ठारह मेल पोर्टर स्टीमर से डाक के आदान-प्रदान करने के किये तैनात थे। सभी मेल पोर्टर अपना-अपना लंच काम पर साथ लाते थे एवं अपने शिफ्ट के अन्य कर्मचारियों के साथ मिल बैठ कर खाते पीते थे। ट्रांजिट मेल ऑफिस के पास ही एक सांढ़ (Bull) रहता था। सभी मेल पोर्टर नियमित रूप से, बड़े प्रेम से अपने लंच बॉक्स में से एक-एक रोटी निकलकर एवं इकठ्ठा कर उस सांढ़ को खाने के लिए दे देते थे। मेल कार्यालय से स्टीमर तक तथा स्टीमर से मेल कार्यालय तक डाक ढोने  के लिए एक-दो डाक ठेला (Mail Cart) थे। सांढ़  ऑफिस के इर्द-गिर्द खा-पीकर आराम फरमाता या मंडराता रहता और डाक थैले को लादता हुआ  देखता रहता था। ज्योंही ठेले पर डाक थैले का लदान पूरा होता, वह सांढ़ ठेले के नज़दीक आता। उसके हत्थे (Handle Rod) में अपना सींग फंसाता और उसे गंतव्य तक ठेल कर पहुंचा देता। मतलब यह कि स्टीमर से डाक कार्यालय और डाक कार्यालय से स्टीमर तक ठेला चलाना उसी सांढ़ का काम था।  सांढ़ को ऐसा करते हुए लोगों ने बहुत दिनों तक देखा।

                [यह कहानी मैंने रेल डाक निरीक्षक, सोनपुर  के पद पर रहते सुनी थी। सोनपुर रेल डाक सेवा में कार्यरत बंगाली बैठा, डाक पोर्टर (घर पहलेजा), नागेश्वर सिंह मेल गार्ड, उमेश शर्मा व दिनेश शर्मा, पोर्टर आदि बड़े चाव से सुनाते थे। वास्तव में यह सच्ची कहानी दिल छू लेनेवाली है। जब एक जानवर कुछ रोटियाँ खाकर मेल पोर्टरों  का इतना वफादार बन सकता है। बगैर किसीके आदेश या दवाब के ईमानदारी से रोटी का ऋण चुका सकता है।  फिर हम तो एक इंसान हैं।]