मंगलवार, 27 अगस्त 2013

काहे होत अधीर

काहे होत अधीर
हड़बड़ी या जल्द्वाजी में काम करना मानवीय अवगुण है। यह अक्सर बने काम को भी बिगाड़ देता है। कहा भी गया है कि जल्दी काम शैतान का। कई बार यह लाभ को हानि, सफलता को विफलता में बदल देता है। इसके विपरीत धैर्य से किए गए काम टिकाऊ माने जाते हैं।  आज की दुनिया तेज़ गति की दीवानी  भले हो, लेकिन इस हड़बड़ी ने लोगों का चैन छिन लिया है और इसने अनेक रोगों को जन्म दिया है। हड़बड़ी पूरे जीवन क्रम को अस्त-व्यस्त ही नहीं कर देती, बल्कि परिवार और समाज में भी अव्यवस्था का कारण बनती है। हमारा मन-मस्तिष्क बेचैन हो जाता है। जो हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। अधीरता अशांति कि जननी है। हर समय दौड़-धूप, हर काम में उतावलापन और अधीरता ने मनुष्य के मस्तिष्क को खोखला कर दिया है। चिंताओं ने उसे इतना कमजोर बना दिया है कि वह छोटी-छोटी परेशानी और हानि तक का सामना करने से कतराता है। ऐसे व्यक्ति के चेहरे पर उदासी, मायूसी और घबराहट आसानी से देखी जा सकती है। योग, स्वाध्याय चिंतन-मनन वगैरह से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। शांत-चित रहने व मधुर व्यवहार की आदत बना ली जाय, तो हड़बड़ी या उतावलेपन को भगाया जा सकता है।                       

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

जिलेबी और समोसा

जिलेबी और समोसा

         अमेरिका का एक वैज्ञानिक घुमने के लिए भारत आया। उसे नाश्ते में दो समोसा मिला। उसने एक समोसा खा लिया और एक समोसा अपनी पैंट की जेब में रख लिया। वापस अमेरिका लौटकर अपने बॉस को दिखाया कि मैं भारत में एक आश्चर्य चीज का पता लगा के आया हूँ। अपनी पैंट की जेब से समोसा निकालकर दिखते हुए उसने  बॉस से कहा- "यह समोसा मैदा का बना हुआ  है, लेकिन इसके अन्दर आलू कैसे गया? यह मेरी समझ में नहीं आया।" उसके बॉस ने उसे एक जोरदार थप्पर मारा और अपनी अटैची खोलकर एक जिलेबी दिखाते हुए कहा-"बीस साल पहले मैं भी भारत गया था और ऐसा ही एक आश्चर्यजनक चीज मुझे भी मिली थी, जो मैदा का ही बना हुआ है, लेकिन इसके अन्दर शुगर कैसे गया? यह मेरी समझ में आज तक नहीं आया और तुम एक नया प्रॉब्लम लेकर आ गए।"   

साहब की छुट्टी

साहब की छुट्टी 
     सभी सरकारी दफ्तरों में अन्य कार्यों के अलावा एक महत्वपूर्ण काम साहब की निगरानी करना भी होता है। सबसे ख़ास काम यह पता लगाना होता है कि साहब छुट्टी पर हैं नहीं ? जिस किसीके पास यह छोटी-सी सूचना रहती है, वह महंगाई में सूर्ख टमाटर जैसा भाव  है। 
     खबर पाकर वह अपने सबसे करीबी को फुसफुसाते हुए बताता है कि  साहब कल छुट्टी पर हैं। इस सूचना के साथ ही यह हिदायत भी नत्थी होती हैं कि यह गोपनीय खबर है, किसी और को मत बताना। अगले कर्मचारी के पीठ फेरते ही दूसरा अपने खास तीसरे को धीमी आवाज़ में यह सूचना देता है और साथ ही इसकी गोपनीयता बनाये रखने की हिदायत भी जोड़ देता है। थोड़ी ही देर में ऑफिस के हर किसी को पता लग जाता है कि साहब, आज हाफ डे में  चले जाएँगे और कल नहीं आएंगे। आज इस राज को सीने में छिपाए इस सिचुएशन का अधिकतम फायदा उठाने की प्लानिंग में जुट जाते हैं। उधर यह खबर अपनी यात्रा जारी ज़ारी रखती है और सरकती हुई ऑफिस के चाय की गुमटी, पान के ठेले वगैरह पर तशरीफ़ ले जाती है।ब्रांच ऑफिस से डाक लेकर आने वालों को भी यह बात मालूम पड़ जाती हैं कि साहब आज ई.एल.पर दिल्ली जा हैं।    
       ऑफिस के ज्यादातर कर्मी फ़ोन से इस जानकारी को पत्नी से शेयर करते हैं। समझदार पत्नियाँ इसमें छिपे भावों को ग्रहण कर खिल उठती हैं। कुछ पूछती हैं कि-आप कहें, तो पड़ोसन रामप्यारी देवी को भी यह खबर बता दूँ। उसे शिकायत हैं कि उसके घोंचू पति को मालूम ही नहीं रहता कि ऑफिस मे क्या चल रहा है।
       यह सूचना मिलते ही ऑफिस का माहौल रंग-बिरंगा हो जाता है। सभी रिलैक्स मूड में आ जाते हैं। जल्दी घर जाने और देर से ऑफिस आने की होड़ लग जाती है।  कुछ बैंक, नगर निगम, आयकर का पेंडिंग काम छांट लेते हैं, कुछ शॉपिंग, तो कुछ घर पर चाय-पकौड़े साथ-साथ पूरे आराम की योजना बनाते हैं। 
       ऑफिस व्यवस्था में ऐसी सूचना देने वाले को सब जगह सम्मान की नज़र से देखा जाता है, जबकि गलत सूचना देनेवाले का हुक्का-पानी बंद। सही सूचना देनेवाले के साथ कई लोग तो भविष्य के करार भी कर लेते हैं। (मृदुल कश्यप)


     

रविवार, 7 अप्रैल 2013

शायरी

एम० एस० रहमान, डाक अधिदर्शक
केन्द्रीय अनुमंडल, भागलपुर  
शायरी 
चले थे सैर करने, सामने श्मशान था।
राह में हड्डियाँ पड़ी थी, मौसम वीरान था।
एक हड्डी जो क़दमों के नीचे आई,
उसका यह बयान था-
ऐ चलनेवालों, ज़रा संभलकर चलो, 
तुम्हारी तरह मैं भी एक इन्सान था।
                              - एम एस रहमान 
     

सोमवार, 25 मार्च 2013

मूड होलिआना है।

मूड होलिआना है।     
       होली आने के लगभग दस दिन पहले से ही लोगों का दिल और दिमाग दोनों होलिआना होने लगता है। जैसे-जैसे होली नजदीक आती जाती है, लोगों के दिमाग पर नशा-सा छाने लगता है। बड़े-बड़े लेखक, कवि, शायर, नेता, अफसर, साहित्यकार पर तो होली का नशा इस कदर छा जाता है कि वे  होली की शान में मिर्च मशाला लगाकर पत्र- पत्रिकाओं में बढ़-चढ़ कर लिखते हैं। प्रिंट मीडिया वाले तो आधे से भी अधिक पन्नों को होली के रंग से रंग देते हैं। टी वी चैनल वाले तो होली के रंग में ऐसे सराबोर हो जाते हैं कि एक ही प्रोग्राम को चाबीसों घंटे दोहराते रहते हैं, होली के नशे में उन्हें और किसी भी विषय पर ध्यान ही नहीं जाता। चाहे आप कितना ही बोर क्यों न हो जाएँ। हम सभी का वे जबरदस्ती का मनोरंजन कराते रहते हैं।
        प्यारे दोस्तों, होली और दारु अर्थात शराब  का चोली और दामन का सम्बन्ध है। होली के अवसर पर हमने देखा है कि कई लोग सुरापान करते हैं और मज़ा लेते हैं। कुछ लोग भांग पीते हैं और मज़ा लेते हैं। वह भी सामूहिक तौर पर। मज़ा लेते -लेते कुछ लोग बहक भी जाते हैं। कुछ सड़क पर गिरते हैं, कुछ नाले में। कुछ लोग बहकते हुए को संभालते भी देखे जाते हैं। दोस्तों से तो क्या अपने दुश्मनों के गले से भी लिपटते देखे जा सकते हैं। यह सब देखकर मेरा भी मूड होलिआना होने लगा है। मेरा मन भी होने लगा है कि इस बार की होली की मस्ती हम भी दारु के एक - दो पैग के साथ करेंगे। चाहे लोग कुछ भी कहे। कुछ लोग सवाल भी कर सकते हैं। इसीलिए उनके लिए मैंने दारु- चालीसा तैयार की है, जो आपके सामने पेश कर रहा हूँ-
दारू-चालीसा  
 १. आप विगत वर्षों की होली की मस्ती लगभग भूल ही गए होंगे। अगर ऐसा है तो शराब का एक-दो पैग लेकर देखिये, पिछले वर्षों में की गई मस्तियां एक-एक कर याद आने लगेगी। और इस बार की मस्ती की तुलना करने लगेंगे। ध्यान रखिये - इस बार की मस्ती कम न होने पाये।

२. दोस्तों! शराब शब्द व्याकरण के अनुसार स्त्रीलिंग है।इसीलिए 
 ज्यादातर पुरुष ही इसका सदुपयोग करते हैं। अगर कोई पुरुष स्त्रीलिंग का प्रयोग करता है, वह भी किसी ना-नुकुर का तो इसमें बुरा क्या है? यह बलात्कार तो नहीं है न?

३. व्याकरण के अनुसार यदि स्त्रियाँ शराब पीती हैं तो समझिये वह
 समलैंगिक हैं। क्योंकि शराब स्त्रीलिंग है। छोडिये, आज के परिवेश में इसकी मान्यता के लिए भी संघष जारी है। 

४. चलिए, अब साहित्य की ओर चलते हैं। कवि हरिवंश रॉय बच्चन ने तो
 शराब की शान में एक पूरी किताब ही लिख डाली- मधुशाला। और  वास्तव में बहुत ही अच्छी कविता लिखी - "मंदिर- मस्जिद झगड़ा   कराये, मेल कराये मधुशाला।  

५. अब चलिए, फ़िल्मी दुनिया में। महानायक अमिताभ बच्चन तो एक पूरी फिल्म ही कर डाली। फिल्म का नाम भी शराबी ही था। इसके  गीत का बोल सुनिए - नशा शराब में होती तो नाचती बोतल। 

६. सचमुच "नशे में कौन नहीं है, बताओ तो ज़रा।" फिर इस दारू को क्यों बदनाम करते हैं आप? 

७. दोस्तो ! इतिहास गवाह है कि शराब में अवश्य कुछ बात ऐसी है, जो मनुष्य  को आत्मकेंद्रित होने पर मजबूर कर देता है। अन्यथा मन तो चंचला होती है। और चंचल मन से कोई भी वैज्ञानिक नया आविष्कार नहीं कर सकता। 

८. दारू से हमारा अर्थ है -बीयर, वाइन, रम, व्हिस्की, शराब, जीन, भांग आदि जैसी कोई भी नशे की चीज। नशा चाहे कोई भी हो। नशा तो नशा है।   भगवान् शंकर नशेरी होकर भी पूजे जाते हैं। उनके भक्त गांजा धूकते हुए कांवर लेकर जल चढाने के लिए जाते हैं तो रास्ते में उनकी सेवा के लिए  हज़ारों सेवक तत्पर रहते हैं। तो फिर शराब के नशेबाज़ से इतनी नफरत क्यों? यह तो सरासर पक्षपात है, अन्याय है।        

९. अब आईये, नए शोध पर। नए शोध के मुताबिक दारू मेटाबोलिक सिंड्रोम कंट्रोल करती है। यह डायबिटिज, हार्ट अटैक आदि खतरों को कम करती है। 

१०. एक वैज्ञानिक सच आपको बता दूं कि रात के खाने से ठीक पहले यदि रेड वाइन के दो पैग (पुरुषों के लिए) या डेढ़ पैग (महिलाओं के लिए) ड्रिंक्स लिए जाएँ तो सेहत के लिए यह फायदेमंद है।

११. दारू का निर्धारित डोज इन्सुलिन के प्रभाव को बढ़ता है जिसके कारण ब्लड सूगर बहता कंट्रोल होता है। देखा गया है कि रात में खाने के ठीक पहले यदि रेड वाइन का एक गिलास पी लें तो एक स्वस्थ व्यक्ति में भोजन के बाद का सूगर तीस प्रतिशत तक कम हो सकता है। बियर एवं अन्य दारुओं से भी यह बीस प्रतिशत तक कम हो सकता है। 

१२. कहने का मतलब यह की ओवर आल मृत्यु को बीस प्रतिशत तक दारू के प्रयोग से कम किया जा सकता है।

१३. दारू एक ऐसी चीज है जो मिनटों में आपको आपसे अलग कर विशिष्ट बना देती है। आप जो कुछ भी बोलने में हिचकिचाते हैं, पीने के बाद अच्छे ढंग से बोलने लगते हैं। जो आप  नहीं पाते, ढंग से सोचने लगते हैं।

१४. जो काम आप सामान्य अवस्था में चाहकर भी नहीं कर पाते, पीने के बाद कुछ भी करने लगते हैं। 

१५. जिनका विज़न क्लियर नहीं होता, दारू पीने के बाद वो साफ़-साफ़ सारे परिदृश्य देखने - समझने लगते हैं। 

१६. दोस्तो! आप जो भी जिंदगी में हासिल नहीं कर पाए हों, दारू के दो पैग लेने के बाद सब कुछ हासिल करने लगते हैं। 

१७. जो भी आप जिंदगी में नहीं झेल पाते हैं, दारू पीने के बाद झेलने लगते हैं।

१८. जब कोई बिना पीये कोई निर्णायक फैसला नहीं ले पाता, पीने के बाद तड़ाक से फैसला ले लेता है। और फैसला भी बड़ा सटीक होता है।

१९. किसी बड़े पद पर बैठे आदमी को नीच कहने की हिम्मत दारू के नशे में ही है। उसे गलियाने की ताकत दारू के नशे में ही है। 

२०. किसी नीचे पद के आदमी से नफरत करने वाला व्यक्ति उसके द्वारा दिए गए बोतल की शराब पीने के बाद उसका सारा काम जल्द कर देता है।  क्षण भर में इज्ज़तदार बन जाता है।

२१. जीवन में केवल झूठ बोलने वाला व्यक्ति दारू के नशे में सच बोलने लगता है। 

२२. सामान्य स्थिति में भले आप अंतर्मुखी हों, पीने के बाद आपके अन्दर के गुण बाहर आने लगते हैं और आप बहिर्मुखी हो जाते हैं।

२३. सुरापान करनेवालों पर उनकी बीवी प्रायः नपुंसक होने का तोहमत लगाती है, क्योंकि आप पीकर घर वापस लौटते हैं और बगैर बीवी के साथ सेक्स किये ही एक तरफ लुढ़क जाते हैं। मेरा मानना है कि यह इलज़ाम बिलकुल गलत है। क्योंकि अगर पीने वाला आदमी नपुंसक होता तो किसी पुरुष पर नशे की हालत में दुसरे के घर में घुसकर पराई औरत के साथ बलात्कार करने का आरोप नहीं लगता। दारू को दोष देना तो सरासर अन्याय है।

२४. भले आप सामान्य स्थिति में भिखाडियों  को एक पैसा भी भीख में न दें, लेकिन पीने के बाद आपके लिए भिखाड़ी दया का पात्र नज़र आने लगता है। और आप महादानी बन जाते हैं। 

२५. किसी दारूवाज़ अफसर को आप ऐसे प्रभावित नहीं कर सकते, लेकिन दारू का एक बोतल आपका सारा बिगड़ा हुआ काम भी बना सकता है। 

२६. आपमें अपने दुश्मनों से सामान्य स्थिति भिड़ने की क्षमता भले ही न हो, लेकिन शराब का दो पैग आपको क्षमतावान बना देता है। 

२७. यदि आपको सामान्य स्थिति में नृत्य और डांस करने में संकोच महसूस होता हो तो आप किसी भी पार्टी में शराब का दो पैग लेकर सबसे अच्छा डांस कर सकते हैं। 

२८. दोस्तो! हमारे देश के संविधान में समाजवाद शब्द बहुत पहले ही जुड़ गया, लेकिन राजनितिक और व्यवहारिक तौर पर यह कहीं नहीं दिखेगा। लेकिन दारू की पार्टी या शराबखाने में समाजवाद तो क्या साम्यवाद की झलक आपको साफ़- साफ़ नजर आएगी। 

२९. सर्दी के दिनों में अगर आपके पास पर्याप्त गर्म कपडे न हों, तो फिक्र मत करें। शरीर गर्म रखने के लिए दारू के दो पैग काफी हैं। 

३०. सामान्य स्थिति में आप जितना भी बुरा काम करें पी लेने के बाद अपने को संत साबित करने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ता। आप जितना चाहें डिंग हांक सकते हैं।

३१.  जब आप दिनभर में ऑफिस के काम से थकावट महसूस करते हैं और पीने की इच्छा हो रही हो तो आप सुरक्षित जगह  की तलाश करने लगते हैं। तो आप ऑफिस के किसी कोने का चयन कर सकते हैं। किसी को भी मना करने की हिम्मत नहीं है।

३२. घर में तो अकेले ही बीवी- बच्चों से नज़र चुराकर पीना पड़ेगा और अकेले पीने में मज़ा नहीं आएगा। इसीलिए ऑफिस के किसी कोने बैठकर किसी भी वैसे कर्मचारी को तलासिये जो आपके साथ बैठकर पीने में अपना बड़प्पन समझे और आपकी हाँ में हाँ मिलाये।

३३. जब आप ऑफिस से शाम को घर जल्द लौट जाते हैं तो बीवी-बच्चों की अनेक समस्याएं झेलने पड़ते हैं। इसीलिए पीने के लिए ऑफिस में देर तक काम कीजिये, ताकि काम के बोझ का एक बहाना भी रहे और बच्चों की समस्याएं और मैडम की किच- किच सुनने से बचा जा सके।

३४. दोस्तो! एक औरत बेवफा हो सकती है, लेकिन शराब बेवफा कभी नहीं हो सकती। और तो और यह बेवफा को भुलाने में कारगर साबित होता है। 

३५.  आप शराब पीकर किसी भी इंतज़ार की रातों को, किसी उम्मीदों को  भुला सकते है।  

३६. हाँ, यह ध्यान रखें कि यदि आप बाईक चलाते हैं और कम शराब पीकर गाडी चलाते हुए ऑफिस से घर लौटते हैं तो एक्सीडेंट होने का खतरा ज्यादा है। इसीलिए पीजिये ताकि आपके कोई सहकर्मी आपको घर तक सुरक्षित छोड़ आवे। 

३७.  अगर आप यह समझते हैं कि शराब एक बीमारी है और यह समाज को ख़त्म कर रही है तो समाज के सभी लोग मिलकर शराब की एक-एक बोतल रोज़ पीकर खत्म कीजिये।

३८.  अगर आपका गुर्दा या लीवर शराब पीने की वज़ह से खराब हो गया हो, मौत से जूझ रहे हों और लोग आपको ताने देते हों, तो उन्हें साफ़- साफ़ कहिये - शराब तो ठीक थी, साल गुर्दा, लीवर ही कमजोर निकला।

३९. पुराने रीति-रिवाज़ को छोड़कर  मरते वक्त अपनी अंतिम इच्छा अपने परिजनों से बताइए , " जब मैं मरूं तो मदिरा मेरे सामने रखी हो और गंगा जल की जगह मेरे मुख में मदिरा जल डाला जाय ताकि मौत को भी मज़े- मज़े से एन्जॉय कर सकूँ। अगर कहने में कोई हिचकिचाहट हो तो गाना गाइए - पंडित जी, मेरे मरने के बाद इतना कष्ट उठा लेना। मुंह में गंगाजल की जगह थोड़ी मदिरा टपका देना।

४०.  अपने वसीयतनामे में बाल बच्चों के लिए किसी मधुशाला का नाम दाल दीजिये ताकि वे आपका जीवन भर गुणगान करता रहे। क्योंकि आपको तो दारू वंश को भी तो बढ़ाना है।

        तो दोस्तो! आइए, होली के अवसर पर हम सब मिलकर सरकार से मांग करें कि दारु पीने के लिए सरकारी अहाते की व्यवस्था की जाय एवं हर नागरिकों के लिए मदिरापान को मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाय।

आप सभी को होली मुबारक हो। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ .......
चि .....................य ..................र्स ......। हि ...............च्च ...........



---- साभार - रंथी एक्सप्रेस                 

सोमवार, 11 मार्च 2013

एक घंटा


एक घन्टा 
     एक कर्मचारी ऑफिस टाइम के बाद नियमित रूप से शराब पार्टी अटेंड करता था और प्रतिदिन देर रात ऑफिस से घर लौटता था। उसका बच्चा जब अपनी माँ से पिता के देर आने का कारण पूछता तो माँ कहती की वे ओवरटाइम काम करते हैं।       
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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

बहाना

बहाना 

           रितेश एक कार्यालय सहायक है। एक दिन उसने अपने कार्यालय पहुँचकर  अपने अधिकारी से अपने दादाजी के दाह संस्कार में शामिल होने की बात कहकर उस दिन की छुट्टी की मांग की। अधिकारी ने उसे छुट्टी दे दी। थोड़ी देर बाद एक बूढ़ा आदमी कार्यालय में आया और रितेश के बारे में पूछताछ करते हुए अधिकारी से मिला और कहा, "सर, रितेश मेरा पोता है। मैं उससे मिलना चाहता हूँ।"
          वह अधिकारी आश्चर्यचकित हुआ और मामले को भांपते हुए उसने कहा, "बाबा ! रितेश बाबु तो अभी कुछ  ही देर पहले छुट्टी लेकर आपके दाह संस्कार में शामिल होने के लिए यहाँ से चले गए है।"
            बूढा आदमी उस अधिकारी को कुछ देर तक देखता ही रह गया और कहा, " सर, सच बताइए न, बहुत जरूरी काम है।"
             अधिकारी ने कहा, " सच कह रहा हूँ बाबा। वे यही कहकर गए हैं।"
             वह बूढा कुछ सोचते हुए लौट गया। जब वह बूढ़ा आदमी घर को लौटने लगा to रास्ते me उसकी नज़र एक पार्क में बैठे एक युवा जोड़ी पर ठिठक गयी। वह जोड़ी प्रेम-क्रीड़ा में लिप्त थी। उसे  सारा माज़रा समझ में आ चु का था। और वह अपनी आँखें बचाते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया। 

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

दो शहरो की कहानी

दो शहरों की कहानी 

            एक मुसाफिर ने सड़क किनारे बैठी एक महिला से पूछा, " आगे जो शहर आनेवाला है उस शहर के लोग कैसे हैं?"
"तुम जहाँ से आए हो, उस शहर के लोग जैसे है।" 
मुसाफिर ने जवाब दिया, "बहुत बुरे लोग थे। स्वार्थी थे। भरोसेमंद भी नहीं थे। यानी हर तरह से नफरत के लाइक थे। 
महिला ने कहा- "ओह, बस इसी तरह के लोग तुम्हें इस शहर में भी मिलेंगे।" 
पहले मुसाफिर को गए हुए कुछ ही देर हुआ था कि दूसरा मुसाफिर आया और उसने भी यही सवाल किया। महिला ने उससे भी यही सवाल पूछा  कि पिछले शहर के लोग कैसे थे। दूसरे मुसाफिर ने जवाब दिया, "वे सब बहुत अच्छे थे। ईमानदार, मेहनती और दूसरों की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करनेवाले। मुझे उस शहर को छोड़ने में बहुत अफ़सोस हुआ।"  
उस विदुषी महिला ने कहा, " बस इसी तरह के लोग तुम्हें इस शहर में मिलेंगे।"      

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

जवाबी कार्ड

जवाबी कार्ड 

      एक गाँव वाला देर से लैटर बॉक्स के सामने खड़ा था। शायद उसे किसी का इंतजार था। कड़ी धूप में अड़ा था।
      वहां से गुजरने वाले एक आदमी ने पूछा - "इतनी देर से यहाँ क्यों खड़े हो, भैया? कड़ी धूप में बीमार पड़ जाओगे।" 
      गाँव वाला बड़ी मासूमियत से बोला - "लैटर बॉक्स में जवाबी कार्ड डाला है। इसलिए खड़ा हूँ कि जवाब आनेवाला है।"

शनिवार, 26 जनवरी 2013

Who is who?

Nand Kishore Roy,
Inspector Posts
(June, 2004)
           













Who is who?

Dear friend! think who is who?
Your parents are today with you,
Your wife, relatives too with you,
But when you don't fulfil their desires,
Relations remain as hollow to you;
Dear friend! then think carefully
Who is what and what is who?
                   

Every thing that's seen today
Is bounded to go tomorrow.
Even the man, wisest of creation
Has to go and has to go;
Dear friend! then think carefully.
What is yours and what is yours?
                                         
 One comes alone and goes alone;
 Even the body nor goes along,
 In this creation is your none.
 So, have refuse in God alone;
 Dear friend! now hold it firmly-
 None is yours, but God alone.  
           
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