बहाना
रितेश एक कार्यालय सहायक है। एक दिन उसने अपने कार्यालय पहुँचकर अपने अधिकारी से अपने दादाजी के दाह संस्कार में शामिल होने की बात कहकर उस दिन की छुट्टी की मांग की। अधिकारी ने उसे छुट्टी दे दी। थोड़ी देर बाद एक बूढ़ा आदमी कार्यालय में आया और रितेश के बारे में पूछताछ करते हुए अधिकारी से मिला और कहा, "सर, रितेश मेरा पोता है। मैं उससे मिलना चाहता हूँ।"
वह अधिकारी आश्चर्यचकित हुआ और मामले को भांपते हुए उसने कहा, "बाबा ! रितेश बाबु तो अभी कुछ ही देर पहले छुट्टी लेकर आपके दाह संस्कार में शामिल होने के लिए यहाँ से चले गए है।"
बूढा आदमी उस अधिकारी को कुछ देर तक देखता ही रह गया और कहा, " सर, सच बताइए न, बहुत जरूरी काम है।"
अधिकारी ने कहा, " सच कह रहा हूँ बाबा। वे यही कहकर गए हैं।"
वह बूढा कुछ सोचते हुए लौट गया। जब वह बूढ़ा आदमी घर को लौटने लगा to रास्ते me उसकी नज़र एक पार्क में बैठे एक युवा जोड़ी पर ठिठक गयी। वह जोड़ी प्रेम-क्रीड़ा में लिप्त थी। उसे सारा माज़रा समझ में आ चु का था। और वह अपनी आँखें बचाते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया।
वह अधिकारी आश्चर्यचकित हुआ और मामले को भांपते हुए उसने कहा, "बाबा ! रितेश बाबु तो अभी कुछ ही देर पहले छुट्टी लेकर आपके दाह संस्कार में शामिल होने के लिए यहाँ से चले गए है।"
बूढा आदमी उस अधिकारी को कुछ देर तक देखता ही रह गया और कहा, " सर, सच बताइए न, बहुत जरूरी काम है।"
अधिकारी ने कहा, " सच कह रहा हूँ बाबा। वे यही कहकर गए हैं।"
वह बूढा कुछ सोचते हुए लौट गया। जब वह बूढ़ा आदमी घर को लौटने लगा to रास्ते me उसकी नज़र एक पार्क में बैठे एक युवा जोड़ी पर ठिठक गयी। वह जोड़ी प्रेम-क्रीड़ा में लिप्त थी। उसे सारा माज़रा समझ में आ चु का था। और वह अपनी आँखें बचाते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया।
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