मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

काम का सौंदर्य

 काम का सौंदर्य 
मशहूर दार्शनिक सुकरात शीशे में अपना मुंह देख रहे थे। उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा तो मुस्कुराने लगा। सुकरात उस  मुस्कराहट में छिपे व्यंग्य को समझ गए। सुकरात ने उनसे कहा- मैं तो हर रोज़ शीशा देखता हूँ ताकि मुझे यह अहसास रहे कि मैं कितना बदसूरत हूँ और फिर दिन भर कुछ ऐसे काम करूँ जिससे मेरी बदसूरती ढँक जाय।  पर शिष्य ने पूछा-इसका अर्थ यह हुआ क़ि खूबसूरत लोगों को शीशा देखने की कोई ज़रूरत नहीं। सुकरात ने कहा-नहीं, ऐसी बात नहीं है। खूबसूरत लोगों को भी हर रोज़ शीशा देखना चाहिए ताकि उन्हें अपनी ख़ूबसूरती का अहसास रहे और फिर दिन भर कोई बुरा काम न करे जिससे उनकी ख़ूबसूरती ही लोगों को बुरी लगने लगे।  

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