बुरा जो देखन मैं चला ..........
इस दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं-
1. वे लोग जो अपनी कमियों एवं कमजोरियों से नुकसान उठाने के बाद भी उन्हें दूर नहीं करते या सुधारते नहीं हैं। वे मूर्खों की श्रेणी में आते हैं।
2. वे लोग जो अपनी कमियों एवं कमजोरियों के कारण नुकसान होने पर उन्हें दूर कर लेते हैं। वे औसत श्रेणी में आते हैं।
3. वैसे लोग जो दूसरों की कमियों एवं कमजोरियों से सीख लेकर अपनी कमियों एवं कमजोरियों को सुधारते हैं। ऐसे लोग विद्वानों की श्रेणी में आते हैं।
जब हम किसी की शिकायत अन्य लोगों के सामने करते हैं, अर्थात किसी की कमियों, ग़लतियों और कमजोरियों की चर्चा अन्य लोगों के सामने करते हैं तो इससे हमारे लिए कई प्रकार से नकारात्मक वातावरण तैयार हो जाता है, जो हमारी सफलता और शांति में बाधक होता है।
तुलसीदास ने कहा है- "जाकी रही भावना जैसी ! प्रभु मूरख देखि तीन्ह तैसी !!" अनुभव भी यही बताता है कि जब हम किसी की कमियां, कमजोरियां और अवगुण देखते हैं, तो हमारा सम्बन्ध भी उन्हीं कमियों एवं कमजोरियों से हो जाता है। हमारी भावना जैसी होगी, हमारे व्यक्तित्व का विकास भी उसी के अनुरूप होगा। हम सभी जानते हैं कि हर क्रिया के समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। कभी-कभी हम दूसरे के विकास को रोकने के चक्कर में उनकी कमियों और कमजोरियों को उजागर कर अपना ही नुकसान किया करते हैं। ऐसा एकबार शुरू हो जाने पर रुकता ही नहीं है और हम अपने समय और उर्जा को बर्वाद करते हैं। हमारी विकास-यात्रा ठहर जाती है और हमें असफलता ही हाथ लगती है।
अतः हमें दूसरे की कमियों, खामियों एवं कमजोरियों को उजागर करने के बदले उससे सीख लेना एवं उसे सुधारकर अपने विकास के रास्ते को प्रशस्त करना चाहिए। इसीलिए कबीरदास कहते हैं- "बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई ! जो दिल ढूँढा आपना,मुझसे बुरा न कोई !!"
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