एम० एस० रहमान, डाक अधिदर्शक केन्द्रीय अनुमंडल, भागलपुर
शायरी
चले थे सैर करने, सामने श्मशान था। राह में हड्डियाँ पड़ी थी, मौसम वीरान था। एक हड्डी जो क़दमों के नीचे आई, उसका यह बयान था- ऐ चलनेवालों, ज़रा संभलकर चलो, तुम्हारी तरह मैं भी एक इन्सान था। - एम एस रहमान